Monday, 28 November 2011

चूहा दौड़

"अगर आप किसी भी औसत रूप से शिक्षित, कड़ी मेहनत करने वाले आदमी की जिन्दगी की देखें, तो उसमें आपको एक सा ही सफ़र दिखेगा. बच्चा पैदा होता है . स्कूल जाता है . माँ बाप खुश हो जाते हैं ,क्योंकि बच्चे को स्कूल में अच्छे नंबर मिलते हैं और उसका दाखिला कॉलेज में हो जाता है .बच्चा स्नातक हो जाता है और फिर योजना के अनुसार काम करता है . वह किसी आसान ,सुरक्षित नौकरी या कैरियर की तलाश  करता है . बच्चे को ऐसा ही काम मिल जाता है . शायद वह डॉक्टर  या वकील बन जाता है . या वह सेना में भर्ती हो जाता है .या फिर वह सरकारी नौकरी करने लगता है . बच्चा पैसा कमाने लगता है ,उसके पास थोक में क्रेडिट कार्ड आने लगता है .और अगर अब तक उसने खरीददारी करना शुरू नहीं किया है तो अब जमकर खरीददारी  शुरू हो जाती है. 

"खर्च  करने के लिए पैसे पास में होते हैं तो वह उन जगहों पर जाता है जहाँ उसकी उम्र के ज्यादातर नौजवान जाते हैं -लोगों से मिलते हैं , डेटिंग करते हैं और कभी कभार शादी भी कर लेते हैं . अब जिन्दगी में मज़ा आ जाता है , क्योंकि  आजकल पुरुष और महिलाएं दोनों नौकरी करते हैं . दो तन्ख्वायें बहुत सुखद लगती है . पति - पत्नी दोनों को लगता है कि उनकी जिन्दगी सफल हो गई है. उन्हें अपना भविष्य सुनहरा नजर आता है. अब वे घर , कार,टेलीविजन खरीदने का फैसला करते हैं, छुट्टियाँ मनाने कहीं चले जाते हैं और फिर उनके बच्चे हो जाते हैं. बच्चों के साथ उनके खर्चे भी बड़ जाते हैं . खुशहाल पति-पत्नी सोचते हैं कि ज्यादा पैसा कमाने के लिए अब उन्हें ज्यादा मेहनत  करना चाहिए . उनका कैरियर अब उनके लिए पहले से ज्यादा मायने रखता है . वे अपने काम में ज्यादा मेहनत करने लगते हैं . ताकि उन्हें प्रोमोसन मिल जाये या उनकी तनख्वा बढ जाये . तनख्वा बढती है पर उसके साथ दूसरा बच्चा पैदा हो जाता है. अब उन्हें एक बड़े घर की जरुरत महसूस होती है. वे नौकरी में और भी ज्यादा मेहनत करते हैं, बेहतर कर्मचारी बन जाते हैं और ज्यादा मन लगाकर काम करते हैं.हो सकता हैं वे दूसरा काम भी खोज लें. उनकी आमदनी बढ जाती है,परन्तु उस आमदनी पर उन्हें इनकम टैक्स भी चुकाना पड़ता है. यही नहीं ,उनहोंने जो बड़ा घर ख़रीदा है उस पर भी टैक्स देना होता है. इसके अलावा उन्हें सामाजिक सुरुक्षा का टैक्स तो चुकाना ही है. इसी तरह,बहुत से टैक्स चुकाते-चुकाते  उनकी तनख्वाह चुक जाती है. वे अपनी बड़ी हुई तनख्वाह लेकर घर आते हैं और हैरान होते हैं कि इतना सारा पैसा आखिर कहाँ चला जाता है. भविष्य के लिए बचत के हिसाब से वे कुछ मीच्वल फंड भी खरीद लेता हैं और अपने क्रेडिट कार्ड से घर का किराना खरीदते हैं. उनके बच्चों की उम्र अब 5  या 6 साल की हो जाती है. यह चिंता भी उन्हें सताने  लगती है कि बच्चों के कॉलेज कि शिक्षा  के लिए भी बचत  जरुरी है. इसके साथ ही उन्हें अपने बुड़ापे के लिए पैसा बचाने की चिंता भी सताने लगती है."

"35  साल पहले पैदा हुए यह दम्पति अब अपनी नौकरी के बाकी दिन चूहा दौड़ में फस कर बिताते हैं. वे अपनी कंपनी के मालिकों के लिए काम करते हैं,सरकार को टैक्स चुकाने के लिए काम करते हैं. और बैंक में अपनी गिरवी सम्पति  तथा क्रेडिट कार्ड के कर्ज को चुकाने के लिए काम करते हैं."

"फिर वे अपनों बच्चों को यह सलाह देते हैं कि उन्हें मन लगाकर पढना चाहिए , अच्छे नंबर लाना चाहिए और किसी सुरक्षित नौकरी की तलाश करना चाहिए . वे पैसे के बारे में कुछ भी नहीं सीखते और इसीलिए वे जिन्दगी भर कड़ी मेहनत करते रहते हैं. यह प्रक्रिया पीडी-पीडी चलती रही है. इसे 'चूहा दौड़' कहते है."


 

Wednesday, 23 November 2011

तम्बाकू के द्वारा मृत्यु और कारण

हमारी प्रकृति का नियम ही  है परिवर्तन , इसे दूसरे शब्दों में ऐसा भी कह सकते हैं कि जो आया है वह जायेगा भी अर्थात जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी होगी . हमारे समाज में लोगों कि मृत्यु होती रहती है परन्तु जब किसी व्यक्ति कि मृत्यु कम उम्र में या किसी रोग के कारण होता है तब लोगों को अधिक दुःख होता है.

हमारे चिकित्सा विज्ञानी  या मानव शरीर के विशेषज्ञ लगातार इस शोध में लगे रहते हैं कि किस प्रकार व्यक्ति को निरोग और स्वस्थ रखा जा सके जिससे कि वह व्यक्ति अपनी सारी संसारिक जिम्मेदारी को पूरा कर ले .

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Monday, 21 November 2011

THE LAW OF PROCESS

  Leadership Develops Daily, Not in a Day

Anne Scheiber  was 101 years old when she died in January of 1995. For years she had lived in a tiny, run-down, rent controlled studio apartment in Manhattan. The paint on the walls was peeling, and the old bookcases that lined the walls were covered in dust. Rent was four hundred dollars a month.

Scheiber lived on Social Security and a small monthly pension, which she started receiving in 1943 when she retired as an auditor for the Internal Revenue Service. She hadn't done very well at the IRS. More specifically, the agency hadn't done right by her. Despite having a law degree and doing excellent work, she was never promoted. And when she  retired at age fifty-one. she was making only $3,150 a year.

"She was treated very, very shabbily," said Benjamin Clark, who knew her as well as anyone did. "She really had to fend for herself in every way. It was really qu9te a struggle."

Scheiber was the model of thrift. She didn't spend money on her self. She didn't buy new furniture as the old pieces she owned became worn out. She didn't even subscribe to a newspaper. About once week, she used to go to the public library to read the Wall Street Journal.

WINDFALL !

Imagine the surprise of Norman Lamm, the president of Yeshiva University in New York City, when he found out that Anne Scheiber, a little old lady whom he had never heard of of - and who had never attended Yeshiva- left nearly her entire estate to the university.

"When I saw the will, it was mind blowing, such an unexpected windfall," said Lamm. "This woman has become a legend overnight."

The estate Anne Scheiber left to Yeshiva University was worth $22 million !

How in the world did a spinster who had been retired for fifty years build an eight-figure fortune ?

Here's the answer. By the time she retired from the IRS in 1943, Anne  Scheiber had maering Plough Cnaged to save $5000. She invested that money in stocks. By 1950, she had made enough profit to buy 1000 share of Schering Plough.Corporation stock, then valued at $10,000. And she held on to that stock, letting its value build. Today, those original shares have split enough times to produce 128,000 shares, worth $7.5 million.

The secret to Scheiber's success was that she spent most of her life building her worth. Whether her stock's values went up of down, she never sold it off with the thought, I'm finished building; now it's time to cash out. She was in for the long haul, the really long haul. When she earned dividends-which kept getting larger and larger-she reinvested them. She spent her whole lifetime building. While other older people worry that they may run out of funds before the end of their lives, the longer she lived, the wealthier she became. When it came to finances, Scheiber understood and applied the Law of Process.

LEADERSHIP IS LIKE INVESTING- IT COMPOUNDS

Becoming a leader is a lot like investing successfully in the stock market. If your hope is to make a fortune in a day, you're not going to be successful. What matters most is what you do day by day over the long haul. My friend Tag Short maintains," The secret of our success is found in our daily agenda." If you continually invest in your leadership development, letting your "assets" compound, the inevitable result is growth over time.

When I teach leadership at conferences, people inevitably ask me whether leader are born. I always answer,"Yes, of course they are..... I've yet to meet one that came into the world any other way!" We all laugh, and then I answer the real question-whether leadership is something a person either possesses or doesn't.

Although it's true that some people are born with greater natural gifts than others, the ability to lead is really a collection of skills, nearly all of which can be learned and improved. But that process doesn't happen overnight. Leadership is complicated. It has many facets: respect, experience, emotional strength, people skills,discipline, vision, momentum, timing the list goes on. As you can see, many factors that come in to play in leadership are intangible. That's only now, at age fifty-one, do I feel that I am truly beginning to understand the many aspects of leadership with clarity.




Tuesday, 8 November 2011

घर वह जगह है जहाँ हम उसे छोड़ने  की इच्छा लिए - लिए बड़े हो जाते है .और फिर वापस लौट पाने की इच्छा लिए- लिए बुडे हो जाते है. 


यदि कोट का पहला बटन गलत लग जाता है तो बाकी बटन भी गलत लग जाता है.